International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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रामधारी सिंह दिनकर के काव्य का स्वाधीनता संग्राम में योगदान

Author(s) Madhu Singla
Country India
Abstract आधुनिक हिंदी साहित्य के अनेक देदीप्यमान नक्षत्रों में से एक रामधारी सिंह दिनकर ने अपने गद्य और पद्य में रचित साहित्य द्वारा देश को नई गति प्रदान की है। पराधीन भारत की वेदना की जन अनुभूति को उन्हांने काव्य में लिपिबद्ध कर समाज में नवीनता का अलख जगाया है। इन्हांेने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धामिक, ऐतिहासिक सभी परिस्थितियों को अपनी कलम द्वारा मूर्त रूप प्रदान किया। इनकी कविताओं में कवि हृदय की वेदना, द्वंद, मानवीयता, देश-भक्ति, आशा, प्रेरणा, संवेदनशीलता, सत्य और अहिंसा जैसे सभी गुण दृष्टिगोचर होते हैं। बदलती परिस्थितियों और महापुरुषों के प्रभाव से उत्पन्न शांति एवं प्रौढ़ता का भाव भी इनकी कविताओं में दिखाई देता है। कवि होनेे के साथ-साथ दिनकर जी विचारक भी रहे हैं। उन्होंने मानव जीवन की चिरंतन समस्याओं पर मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं। इनके प्रत्येक काव्य संग्रह में राष्ट्रीय अस्मिता का उद्घोष एवं युग जीवन का स्वर गुंजारित होता है। पराधीन भारत के लिए इनकी वाणी में केवल विद्रोह और क्रांति ही नहीं बल्कि सौंदर्य व प्रेम चेतना का संदेश भी है। रामधारी सिंह दिनकर जैसे साहित्यकार का साहित्य न केवल उस समय में अपितु वर्तमान संदर्भ में भी राष्ट्र के प्रति प्रमे ,जागरूकता और मानवता का ज्वलंत उदाहरण है। जीवन के शाश्वत मूल्यों को रेखांकित करते हुए इन्होंने मनुष्य के कर्म पथ को प्रशस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।इसीलिए दिनकर जी को जन-जन का प्रतिनिधि एवं राष्ट्रीय कवि होने का गौरव प्राप्त है।
Field Arts
Published In Volume 7, Issue 1, January-February 2025
Published On 2025-01-10
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i01.34820
Short DOI https://doi.org/g82gw4

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