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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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हिमालयी आन्दोलनों का आन्दोलनकारी जनकवि - गिरीश तिवारी ‘गिर्दा'

Author(s) Deepak Kumar, Kiran Tripathi
Country India
Abstract उत्तराखण्ड राज्य अपनी भौगोलिक संरचना एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर धनी राज्य रहा है। यहाँ की नदियाँ, वन, तथा ग्लेशियर उत्तराखण्ड को ही नहीं अन्य राज्यों को भी प्राचीन काल से ही लाभान्वित करते आये हैं। पँूंजीपतियोेें द्वारा इस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करने के विरूद्ध समय-समय पर उत्तराखण्ड के कई आन्दोलनकारियों ने मुखर होकर उनका विरोध किया। ऐसे ही आन्दोलनकारियों में से एक थे,्् कुमाऊँंनी और हिन्दी के प्रसिद्ध जनकवि, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’। गिर्दा का उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचल के प्रति अगाध प्रेम और स्नेह उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप में देखने को मिलता है। यहाँं की नदियां, नौले, जंगल, जमीन और पहाड़ों के अंधाधुंध दोहन के वे प्रबल विरोधी रहे। अपनी मातृभूमि और हिमालयी क्षेत्र की रक्षा के लिए वे सक्रिय रूप से अपनी आवाज से जनता को इस पर्वतीय अंचल की भौगोलिक संरचना के प्रति निरन्तर जागरूक करने का कार्य करते रहे। अपने गीतों और कविताओं के माध्यम से जहांँ वे एक ओर क्षेत्रीय जनमानस में जागृति फैलाने का कार्य कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा और भौगोलिक संरचना के साथ छेड़छाड़़ करने वालों का खुलकर विरोध करते रहे। इस क्षेत्र की प्राकृतिक संरचना के कारण वे यहांँ बनाये जा रहे बड़े-बड़े बांधों के भी पक्षधर नहीं थे। तत्कालीन उत्तराखण्ड के आन्दोलनांे में उनकी सक्रियता देखते ही बनती है। समाज, संस्कृति, प्रकृति और क्षेत्रीय मुद्दों पर वे सदैव मुखर रहे। चिपको आन्दोलन के दौर में वनों की नीलामी के खिलाफ प्रतिरोध, नशा नहीं रोजगार दो, उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन तथा नदी बचाओ अभियान में उनकी सक्रिय भागीदारी रही।
Keywords उत्तराखण्ड, पहाड़, गिर्दा, समाज, संस्कृति, प्रकृति, क्षेत्रीय आन्दोलन, वनों की नीलामी, नदी बचाओ अभियान, नशा नहीं रोजगार दो, उत्तराखण्ड आन्दोलन।
Field Sociology > Archaeology / History
Published In Volume 7, Issue 1, January-February 2025
Published On 2025-02-28
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i01.37921
Short DOI https://doi.org/g86w5w

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