International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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बदलते परिवेश में लघु एवं कुटीर उद्योग का ग्राम्य विकास पर प्रभाव

Author(s) Dr. Jay Prakash
Country India
Abstract लघु एवं कुटीर उद्योग अपनी वस्तुओं का उत्पादन करके राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान देते हैं। यदि इनके तकनीकी स्तर पर सुधार किया जाये एवं बिजली से संचालित मषीनों के उपयोग की सुविधायें इन्हें प्रदान की जाये तो लघु उद्योगों की उत्पादकता में सुधार किया जा सकता है और राष्ट्रीय उत्पादन में इनके और अधिक योगदान की आषा की जा सकती है।
हमारे देष में उत्पादन और राष्ट्रीय आय की वृद्धि में लघु व कुटीर उद्योगों का बहुत महत्व है। कुटीर उद्योग परम्परागत उ़द्योग है, इनमें कम पूँजी लगती है तथा घर के सदस्यों द्वारा ही वस्तुयें बना ली जाती है। लघु उद्योग में भी कम पूँजी लगती है। लघु उद्योग इकाई ऐसा उद्योगिक उपक्रम है, जहाँ संयत्र एवं मषीनरी में निवेष 1 करोड़ रूपये से अधिक न हो, किन्तु कुछ मद जैसे होजरी, हस्त-औजार दबाई व औषधि, लेखन सामग्री और खेलकूद सामान आदि में निवेष की सीमा 5 करोड़ रु0 तक है लघु उद्योग को नया नाम लघु उद्यम दिया गया है। सरकार अब इन उद्योगों के लिए ऋण उपलब्ध करा रही है और इससे उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल रही है तथा बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त हो रहा है। लघु उद्योग छोटे पैमाने की वह उद्योगिक इकाईयाँ होती है, जो मध्यम स्तर के विनियोग की सहायता से उत्पादन प्रारम्भ करती है। इन इकाइयों में श्रम शक्ति की मात्रा भी कम होती है और सापेक्षिक रूप से वस्तु एवं सेवाओं का कम मात्रा में उत्पादन किया जाता है। ये उद्योग बड़े पैमाने के उद्योगों से पूँजी की मात्रा रोजगार उत्पादन एवं प्रबन्ध, आगतों एवं निर्गतों के प्रवाह इत्यादि की दृष्टि से भिन्न प्रकार के होते हैं।
Field Sociology > Geology
Published In Volume 7, Issue 3, May-June 2025
Published On 2025-06-01
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i03.46687
Short DOI https://doi.org/g9m2dx

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