International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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भ्रामरी प्राणायाम : किशोर विद्यार्थियों की संवेगात्मक स्थिरता का प्रभावी उपाय

Author(s) कु. दीपशिखा सिलमाना, डॉ. ममता भारद्वाज
Country India
Abstract प्राणायाम महर्षि पतंजलि आदि ऋषि-मुनियों द्वारा निरूपित एक पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है जिससे असाध्य रोग मुक्ति ही नहीं अपितु मन शांति व समाधि की प्राप्ति भी होती है। यह आरोग्य एवं आध्यात्मिक दोनों रूपों में विशेष महत्व रखता है। प्राणायाम जीवन की किसी भी अवस्था में सहजता से किया जा सकता है। किशोरावस्था जीवन का एक वह स्तर है जिसमें विद्यार्थियों में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक रूप से तीव्र गति से परिवर्तन देखा जाता है। इस समय विद्यार्थियों के अंदर गुस्सा, चिड़चिड़ापन, व्याकुलता आदि रूपों में संवेगात्मक स्थिरता का अभाव देखा जाता है। इस अवस्था में किशोरों का मस्तिष्क का अग्र भाग प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (Prefrontal Cortex) जो निर्णय एवं आवेग नियंत्रण के लिए उत्तरदायी है पूर्णतः परिपक्व नहीं होता तथा मस्तिष्क के संवेगों का केंद्र एमिग्डाला (Amygdala) जो संवेगों का संपादन करता है। किशोर विद्यार्थी अपने निर्णयों के लिए प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स के स्थान पर मस्तिष्क के एमिग्डाला पर अधिक विश्वास रखता है जिस कारण किशोरों में सांवेगिक रूप से तीव्रता देखी जाती है। प्रभावशाली यौगिक अभ्यासों में भ्रामरी प्राणायाम द्वारा भ्रमर की भाँति गुंजन करते हुए नाद रूप में ॐ का उच्चारण करते हुए श्वास को बाहर छोड़ देते हैं जिसके फलस्वरूप मस्तिष्क को शांति एवं वेगस नर्व (vagus nerve), अल्फ़ा ब्रेन वेव्स, निर्णय क्षमता, संवेग नियंत्रण बढ़ता है। भ्रामरी प्राणायाम के नियमित अभ्यास द्वारा किशोर विद्यार्थियों की संवेगात्मक स्थिरता पर सकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
Keywords भ्रामरी प्राणायाम, संवेगात्मक स्थिरता, किशोर विद्यार्थी आदि
Field Sociology > Education
Published In Volume 7, Issue 3, May-June 2025
Published On 2025-06-30

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