International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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बौद्धिक संपदा अधिकार इतिहास की दृष्टि से

Paper Id PIPRDA-2312
Author(s) रवीद्र गोस्वामी
Country India
Abstract लीक पर वे चले जिनके कदम दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो अपनी यात्रा से बने अनिर्मित पंथ प्यारे है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पंक्तियां अपने आप में मानव की नैसर्गिक प्रतिभा की ओर इशारा करती है जो कि अपने आप में सबसे अलग,अनूठी और अलहदा है।

मानव अपनी ज्ञान की निरंतर बढ़ती परंपरा में नित नए आयाम जोड़ता है, साझा करता है और संपूर्ण मानव जाति को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता आया है।

मानव मस्तिष्क अनंत संभावनाएं लिए सृजन करता आया है तथा आने वाली पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए सदा ही प्रेरित करता आया है।

नैसर्गिक प्रतिभा से परिपूर्ण मानव मस्तिष्क एक अनूठी कृति है यह अनूठा है, अद्भुत है, प्रत्येक प्राणी अपने आप में प्रत्येक दूसरे से अलग है उसकी अपनी पहचान है यही वजह है कि पृथ्वी के किसी भी व्यक्ति के अंगुली छाप एक दूसरे से नहीं मिलते हैं। जब अंगुली छाप नहीं मिलते हैं तो उसके सृजन की नैसर्गिक कृति कैसे मेल खाएगी।
प्रकृति का यही अंदाज प्रत्येक मानव से भी अपेक्षा करता है लेकिन वैश्विक स्तर पर ज्ञान के आदान-प्रदान एवं नए सृजन ने कई परेशानियां भी खड़ी की उनमें प्लेगेरिज्म एक है- किसी दूसरे की कृति की नकल करना, सृजनकर्ता की बिना इजाजत के। सृजन करता के अथक श्रम और मौलिकता को बिना तवज्जो दिए।

इसी के मद्देनजर वैश्विक एवं राष्ट्रीय स्तर पर 6 तरह के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स को मान्यता दी गई है जिनमें पेटेंट्स, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट्स, डिजाइंस, डाटा बेसेस एंड ट्रेड सीक्रेट प्रमुख है। दुनिया भर मे बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए 1967 में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन डब्ल्यू.आई.पी.ओ. का गठन किया गया। मौजूदा वक्त में इसके तहत 26 अंतर्राष्ट्रीय संधि आती है और अभी इसके 191 सदस्य राष्ट्र है। इसका मुख्यालय जिनेवा में है। भारत 1975 में WIPO का सदस्य बना। प्राचीन भारत में सृजन कर्ताओं ने कभी नाम लेने की होड़ नहीं कि, आज भी कई अद्भुत कलाकृतियां बिना नाम की है, यह सृजनकार की उदारता का जीवंत उदाहरण है। भारतीय संस्कृति की पहचान है एनोनिमिटी अर्थात अनामता। उन्होंने बड़े-बड़े सृजन किए अद्भुत कलाकृतियां बनाई लेकिन कहीं भी अपना नाम नहीं छोड़ा, यह उनकी उदारता ही है। और भारत में कहा जाता है – “नेकी कर दरिया में डाल”, अर्थात अच्छे काम करना है व भूल जाना है, यही हमें अदृश्य रूप से WIPO के उद्देश्यों का पालन करने में सतत सहयोग देता आया।
Published In Conference / Special Issue (Volume 5 | Issue 1) - डिजिटल युग में साहित्यिक चोरी एवं बौद्धिक सम्पदा अधिकार (बहुविषयक) (PIPRDA-2023) (January 2023)
Published On 2023-01-25
Cite This बौद्धिक संपदा अधिकार इतिहास की दृष्टि से - रवीद्र गोस्वामी - IJFMR Conference / Special Issue (Volume 5 | Issue 1) - डिजिटल युग में साहित्यिक चोरी एवं बौद्धिक सम्पदा अधिकार (बहुविषयक) (PIPRDA-2023) (January 2023).

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