International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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हिन्दी उपन्यसों पर आधारित हिन्दी फिल्मों का अनुशीलन :12th फेल उपन्यास के संदर्भ में।

Author(s) साक्षी ., प्रो. उषा पाठक
Country India
Abstract मानव मस्तिष्क ने सदैव प्रगति के पथ पर चलते हुए नवीनता को तलाशने की कोशिश की और सदैव उस नवीनता में मनोरंजन को भी शामिल किया है। मनोरंजन के रूप में ही फिल्मों का भी आविष्कार हुआ है और यह फिल्में हमारे साहित्य और समाज को दर्शाती है। इसलिए महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “साहित्य को समाज का दर्पण कहा है।“ भारतीय सिनेमा और हिंदी साहित्य का बहुत पुराना और बहुत गहरा संबंध रहा है। सन 1913 से ही भारतीय सिनेमा और साहित्य का संबंध चल रहा है। क्योंकि इसी वर्ष रविंद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो दूसरी तरफ राजा हरिश्चंद्र दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्देशित फिल्म जो राजा हरिश्चंद्र की कथा से ली गई, पहली मूक फिल्म बनी। इससे पहले भी 1912 में पुंडलिक फिल्म का प्रदर्शन हुआ था। सन 1913 में भारत में भारतीय फिल्म का श्री गणेश हुआ, जिसके जनक थे, मराठी भाषी घुंडीराज गोविंद फाल्के पुष्प (दादा साहेब फाल्के) और फिल्म थी, राजा हरिश्चंद्र। इससे यह पता चलता है कि जब भारतीय साहित्य विश्व में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहा था। तब साहित्य के माध्यम से उस समय सिनेमा जगत भी अपनी जमीन तलाशने में लगा था।
आज 100 साल बाद भी बहुत सा साहित्य रचा गया। जिस पर बहुत सी फिल्में भी बनी और बहुतों को पुरस्कृत भी किया गया। सिनेमा जगत में कई फिल्म ऐसी रची गई जिसकी पृष्ठभूमि हिंदी साहित्य से ली गई और वह फिल्में दर्शकों को पसंद भी आईं। जैसे गोदान उपन्यास पर 1963 में बनी फ़िल्म ‘गोदान’, चित्रलेखा उपन्यास पर 1941 और 1964 में बनी फ़िल्म ‘चित्रलेखा’, गबन उपन्यास पर 1966 में बनी फिल्म ‘गबन’, कोहबर की शर्त उपन्यास पर 1982 में बनी फ़िल्म ‘नदिया के पार’, सूरज का सातवां घोड़ा उपन्यास पर 1992 में बनी फिल्म ‘सूरज का सातवां घोड़ा’, काशी का अस्सी उपन्यास पर 2018 में बनी फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’।
इस तरह से विश्व पटल पर यदि झांक कर देखा जाए तो सिनेमा जगत ने साहित्य के माध्यम से अपना कद बढ़ाया है और दर्शक के हृदय पटल पर अपना स्थान बनाने में कायम भी रहा है। साहित्य भले ही कुछ लोगों तक पहुंचा हो लेकिन वही साहित्य फिल्मों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचता है और लोगों द्वारा पसंद भी किया जाता है। जब पहली बार 1913 में आलमआरा लगी थी, तब भीड़ को नियंत्रित करने में के लिए पुलिस को बुलानी पड़ी।
इसी फिल्म और उपन्यासों के श्रृंखला में कुछ फिल्में जैसे 1936 में प्रेमचंद द्वारा प्रकाशित गोदान उपन्यास हिंदी की महानतम कृतियों में से एक है। इस उपन्यास में ग्रामीण समाज को प्रमुख स्थान तो शहरी को गौण स्थान पर रखा गया है। वहीं दूसरी तरफ गबन उपन्यास में मध्यवर्गीय समाज की इच्छा, आकांक्षा और उनकी समस्याओं का बखूबी वर्णन करते हैं। ट‌्वेल्थ फेल उपन्यास जो युवा लेखक अनुराग द्वारा लिखा गया है, जो उपन्यास युवा पीढ़ी को प्रेरित करने में कोई कसर नही छोड़ती है। इसमें कथाकार ने नायक के संघर्ष को दिखाया है कि कैसे वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में हर संभव प्रयास करता है और सफल भी होता है। लेकिन इसके आगे – पीछे भी कई ऐसी घटनाएं होती है। जिसका विश्लेषण करना इस शोध पत्र का उद्देश्य है। लेखन चाहे उपन्यास का हो या कहानी का लेखक का एक व्यक्तिगत कर्म होता है जो स्वांत सुखाय के लिए होता है। युवा पटकथाकर और कवि नीलय उपाध्याय का नजरिया है “ बदलाव दर्शकों के रुचि को देखते हुए आते हैं क्योंकि रुचि बदली है इसलिए फिल्मी लेखन में बदलाव आया है। अब युवा दर्शकों को ध्यान में रखकर फिल्में बन रही हैं साहित्यकार को यह ध्यान रखने की जरूरत नहीं पड़ती वह अपनी मर्जी का मालिक होता है” ।
उपर्युक्त संदर्भों को देखते हुए प्रस्तुत शोध में ट‌्वेल्थ फेल को ध्यान में रखते हुए, इस उपन्यास में भ्रष्टाचार, गरीबी, सामाजिक परिवेश, आर्थिक परिवेश आदि परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए विवेचन किया जाएगा। जिसके लिए वर्णात्मक और विश्लेषणात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया जाएगा।
Keywords बीज शब्द _ सिनेमा, उपन्यास, विवेचन, सामाजिक, भ्रष्टाचार, गरीबी, संघर्ष,
Field Arts > Movies / Music / TV
Published In Volume 7, Issue 4, July-August 2025
Published On 2025-07-18
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i04.51217
Short DOI https://doi.org/g9t2g9

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