
International Journal For Multidisciplinary Research
E-ISSN: 2582-2160
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Volume 7 Issue 4
July-August 2025
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परमारकालीन हाथीथान / गजशाला वर्ष 950 ईस्वी, कालांतर से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
Author(s) | Mr. Deepak Gaykwad |
---|---|
Country | India |
Abstract | नौंवी शताब्दी से तेरहवी शताब्दी ईस्वी में मालवा निमाड़ क्षेत्र, जो वर्तमान में मध्यप्रदेश राज्य में अवस्थित हैं, यहाँ मध्यकाल में परमारवंशी राजाओं का शासन रहा हैं। इन्होंने अपने शासनकाल में मालवा-निमाड़ क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का युक्तियुक्त उपयोग करते हुए इस क्षेत्र को सांस्कृतिक, धार्मिक, सामरिक उपलब्धियों से अभिभूत कर यहाँ कई बड़े नगरों का निर्माण किया, जिसमें मुख्यतः परमारवंशी राजाओं की पारंपरिक राजधानी नगर उज्जैयिनी एवं राजा भोजदेव परमार द्वारा नवनिर्मित राजधानी नगर धारानगरी मुख्य रूप से सम्मिलित हैं। इन नगरों में परमारवंशी राजाओं द्वारा शिक्षा एवं संस्कृति के चहुंओर प्रसार हेतु विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थान यथा 'सरस्वती सदन' बनवाऐ, जिनमें धारानगरी, माण्डव, उज्जैयिनी एवं चित्तौड़गढ़ में बनाऐ गऐ सरस्वती सदन प्रमुख हैं। तत्कालीन परमारवंशी शासन की सीमाएँ, पश्चिम में राजपुताना (राजस्थान) गुर्जर, प्रतिहार वंश क्षेत्र, उत्तर में दिल्ली सल्तनत क्षेत्र, दक्षिण पूर्व में कल्चुरी वंश तथा दक्षिण में चोल वंश राज्य की सीमाओं से घिरे होने के कारण मालवा-निमाड़ क्षेत्र सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रहा है। साथ ही इस क्षेत्र में नर्मदा नदी के अविरल बहाव, विध्यांचल एवं सतपुड़ा जैसे वृहद् पर्वतों की घाटियों में पर्याप्त भू-जलस्तर यहाँ की भूमि को वर्ष भर सिंचित बनाऐ रखते हैं. जिस कारण इस क्षेत्र में कृषि समृद्ध स्थिति में बनी रहती हैं, और इससे मिलने वाला राजस्व एवं उससें एकत्रित कोष सदैव बाहरी राजवंशों तथा आक्रांताओं को इस पर शासन कर विजय करने की लालसा बनाऐ रखता हैं। यही कारण रहा होगा की परमारवंशीय राजाओं ने अपने वास्तुशास्त्रीय उत्तम नगर नियोजन में सुरक्षा / सामरिक दृष्टिकोण से किए गऐ निर्माणों को अधिक महत्ता प्रदान की जिसमें नगर के चहुंऔर बनाए गए "परिस्खे", घुड़शालाएँ, एवं गजशालाएं प्रमुख हैं। परमारवंशी राजाओं द्वारा निर्मित नगरों के नियोजन में सुरक्षा/सामरिक दृष्टिकोण से हाथियों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, यही कारण रहा होगा कि तदसमय परमारवंशी राजाओं ने अपनी सैना में मुख्य रूप से गजों (हाथियों) को सम्मिलित किया था तथा इनके उचित प्रबंधन एवं आवास हेतु अपने नगरों में हाथीथानों / गजशालाओं / हाथीखुंटो का निर्माण किया। प्राचीन एवं मध्यकालीन ऐतिहासिक राजवंशों में राज्य की शाही सेना में गजों का होना न सिर्फ सांस्कृतिक, सामाजिक, समृद्धशाली होने का प्रतीक हैं, अपितु यह शासन के विराट गौरव एवं शक्ति का भी परिचायक रहें हैं। मौर्य, गुप्त, परमार, राजपुत, मराठा, मुगल, सल्तनत, चोल, संगम आदि राजवंशों में तो इन्हें प्रतीकात्मक रूप से राजकीय मोहरों में भी स्थान दिया गया है। |
Keywords | गजशाला, हाथीथान, हाथीखूंट, रसद, चतुरंगी, कैपरिसन, परिखे, गज ए प्रधान, गजशाला प्रमुख, गजेन्द्र, हस्तिशाला, 'सर्वतोभद्र' |
Field | Arts |
Published In | Volume 7, Issue 4, July-August 2025 |
Published On | 2025-07-24 |
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E-ISSN 2582-2160

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10.36948/ijfmr
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