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E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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वर्तमान भारत में पंचायती राज की भूमिका

Author(s) Mitha Ram
Country India
Abstract प्राचीन काल से ही पंचायतें किसी न किसी रूप में विद्यमान थी। स्वंत्रता प्राप्ति के पष्चात् भारत का नया संविधान बना किन्तु उसके मू लप्रारूप मे पंचायतों का प्रावधान नही था। राज्य व्यवस्था के संदर्भ मंे गांधीजी ने यह स्पष्ट रूप से व्यक्त किया था कि निचले स्तर पर पंचायतों को रखना होगा, अन्यथा उच्च और मध्य का तंत्र गिर जाएगा और उनके विचार के अनुरूप देष मे गांवो को स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर बनाने के लिए पंचायतों को आधारषिला मान गया था। पंचायतों की वैचारिक अवधारणा के रूप में ही उन्होने ‘ग्राम गणतंत्र’ की परिकल्पना पर बल दिया था। पंचायत पर गांधीजी के विचार का संविधान निर्माण के क्रम में संविधान सभा मे चल रही बहस मे विषद चर्चा हुई थी और पंचायत की सार्थकता पर व्यापक समर्थन मिला था। भारत के गाँवों की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था मे ं पंचायतो की भूमिका हमेषा ही महत्वपूर्ण रही है । तदुपरान्त संविधान सभा के सदस्य के संथानम ने पंचायत के प्रावधान हेतु एक संषोधन प्रस्तुत किया जिसके आधार पर भारतीय संविधान के राज्य नीति निर्देषक तत्व के अनुच्छेद 40 में पंचायतों के संबंध में एक संक्षिप्त उल्ले ख को सम्मिलित किया गया ज्ञातव्य है कि नीति निर्देषक तत्व के अन्तर्गत सभी प्रावधानों को लागू करने हेतु केन्द्र और राज्य सरकारों पर कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं होती है। पंचायतों के संबंध में संविधान के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 40 मे ंजिस संक्षिप्त प्रावधान का उल्लेख है वह निम्नलिखित हैः ‘‘राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी षक्तियाँ और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त षासन इकाईयों के रूप मे कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवष्यक हो’’।
ब्रिटिष काल मंे भी भारत के गांवो में ग्राम पंचायतें, जाति पंचायतें और व्यवसाय से संबंधित पंचायतें कार्यरत रही। उस दौर में अंग्रेजों द्वारा समस्त व्यवस्थाओं को वैधानिक स्वरूप में ढाला जाने लगा। सन् 1859 में पुर्तगाल क्षेत्र गोआ में पार्टेरिया नं. 7575 नामक कानून के द्वारा ‘‘जुण्टा फ्रेग्वेषिया’’ नामक स्थानीय स्वषासन संस्थाएं गठित होने लगी। सन् 1870 में बंगाल में ‘चौकीदारी अधिनियम’’ पारित हुआ। भारत मे स्थानीय स्वषासन संस्थाओं का मैग्नाकार्टा कहलाने वाला प्रस्ताव सन् 1882 मंे लॉड ‘रिपन द्वारा लाया गया। इसमें ग्राम पंचायतों, न्याय पंचायतों तथा जिला बोर्डो के गठन का प्रावधान था। इस क्रम में पहला प्रयास मद्रास लोकल बॉडीज एक्ट 1884 के रूप में सामने आया। ऐसे ही कानून अन्य राज्यों में भी बनने लगे।
स्वतंत्रता के पष्चात् 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम लागू किया गया, किन्तु यह कार्यक्रम ग्रामीण अंचलों मे सफलता प्राप्त नहीं कर सका। इसी क्रम में विफलता के कारणों को जानने एवं नयी रणनीति सुझाने हेतु बलवंत राय मेहता समिति गठित की गई।
2 अक्टूबर 1957 को केन्द्र सरकार द्वारा बलवंत राय मेहता समिति गठित की गई। इस समिति की रिपोर्ट में इस बात की सिफारिष की गई कि सरकार को ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए संस्थाएं गठित कर विकास का सारा कार्य इनको सौंप दिया जाना चाहिए इसके अंतर्गत जनता द्वारा चुने गए स्थानीय स्वषासन के तीन ढाँचे की व्यवस्था की गई निचले स्तर पर अर्थात् ब्लॉक मे पंचायत समिति और सर्वोच्च स्तर पर यानि जिले मे जिला परिषद।
सर्वप्रथम 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान मे पंचायती राज की नई त्रिस्तरीय प्रणाली की षुरूआत हुई यह उल्लेखनीय है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्टूबर, 1959 को नागौर राजस्थान मे बलवंत राय मेहता समिति की अनुषंसाओं पर आधारित त्रिस्तरीय पंचायती राज के उद्घाटन भाषण मे कहा था- ‘‘हम लोग अपने देष मे लोकतंत्र अथवा पंचायती राज की आधारषिला रखने जा रहे है यदि महात्मा गांधी अपने बीच होते तो कितने प्रफुल्लित होते। यह एक एतिहासिक कार्य है और इससे उनको बड़ी प्रसन्नता होती कि यह ऐतिहासिक कदम उनके जन्म-दिवस पर उठाया गया’’ राजस्थान के बाद आन्ध्र प्रदेष मे पंचायती राज लागू हुआ। फिर 1960-61 तक राज्यों मे अधिनियम बना और पंचायती राज की विधिवत षुरूआत हुई। केन्द्र में प्रथम बार गैर कांग्रेसी जनता पार्टी सरकार के सत्तारूढ होते ही एक बार पुनः ‘ग्राम राज’ की मांग बलवती होने लगी। पंचायतीराज संस्थाओं की दुर्दषा को देखते हुए यह आवष्यक था कि इन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया जाए। इसी क्रम में मंत्रिमण्डल सचिवालय के प्रस्ताव द्वारा 12 दिसम्बर, 1977 को अषोक मेहता समिति का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट ;1978 में उल्लेख किया है ‘‘पंचायती राज उतार-चढ़ाव की कहानी है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह तीन अवस्था से गुजरा है- आरोहण की अवस्था ;1959-64, तक निष्क्रियता की अवस्था ;1965-69, और अवनति की अवस्था ;1969-77,’’ अषोक मेहता समिति ने अपनी रिपोर्ट में पंचायती राज की अवनति के चार मुख्य कारणों का उल्लेख किया है।
प्रथम, चतुर्थ पंचवर्षीय योजना की अवधि में कई तरह के लक्ष्य समूहों से संबंधित विभिन्न योजनाओं हेतु नई सरकारी ऐजेन्सियों का जिला स्तर पर सृजन किया गया और सभी को निर्वाचित जिला परिषद के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया। नतीजन पंचायती राज को ऐसे वित्तीय अनुदान से वंचित रहना पड़ा।
दूसरा, राजनेताओं का पंचायती राज संस्थाओं को षक्तिषाली बनाने के प्रति कोई उत्साह नहीं था। कुछ राज्यों में तो पंचायती राज संस्थाएँ भंग थी और नए चुनाव को लम्बे अर्से तक टाल दिया गया था।
Keywords .
Field Arts
Published In Volume 5, Issue 4, July-August 2023
Published On 2023-08-22
Cite This वर्तमान भारत में पंचायती राज की भूमिका - Mitha Ram - IJFMR Volume 5, Issue 4, July-August 2023.

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