International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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वैदिककालीन नारी की शिक्षा : एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

Author(s) Mrs. Bhavna Singh, Dr. Ashok Kumar Verma
Country India
Abstract सारांश - भारतीय इतिहास में यदि नारी की स्थिति पर प्रकाश डाला जाए तो सर्वप्रथम वैदिककालीन नारी के विषय में उल्लेख उपलब्ध है। वैदिक काल भारतीय समाज की नींव का महत्त्वपूर्ण समय रहा है। इस समय धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों में उन्नति देखी गई जिसका प्रभाव अद्यपर्यन्त परिलक्षित होता है। वैदिक काल लगभग १५०० ई० पू० से ५०० ई० पू० तक स्वीकारा गया है। वैदिक काल में ही वर्णव्यवस्था के आधार पर समाज का विभाजन हुआ जिसने न केवल तत्कालीन पुरुषों के जीवन को अपितु महिलाओं की स्थिति को भी प्रभावित किया। इस शोधपत्र में शोधार्थिनी ने वैदिक काल में महिलाओं की शिक्षा का वर्णव्यवस्था के विशेष सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने का प्रयास करते हुए यह जानने का प्रयास किया है कि क्या वैदिककालीन समाज में नारी को जो देवीस्वरूपा स्थान प्राप्त था वह समस्त वर्णों में एकसदृश था अथवा केवल किसी वर्णविशेष की नारी को उत्कृष्ट स्थान एवं अधिकार प्राप्त थे। जिन विदुषी स्त्रियों के उल्लेख उपलब्ध हैं क्या वे सभी वर्णों का प्रतिनिधित्व करती हैं? इस शोध पत्र में वर्णव्यवस्था आधृत नारियों के अधिकार एवं सामाजिक स्थान पर भी दृष्टिपात किया गया है।
Keywords मुख्य शब्द- वैदिक काल, वर्णव्यवस्था, ऋषिकन्या, शिक्षा, अधिकार, कर्त्तव्य, विदुषियाँ, सीखना, अनुकरण, प्रवृत्ति आदि।
Published In Volume 7, Issue 3, May-June 2025
Published On 2025-05-28
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i03.46209
Short DOI https://doi.org/g9mn73

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