International Journal For Multidisciplinary Research

E-ISSN: 2582-2160     Impact Factor: 9.24

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बनारस की पारंपरिक शिल्प में रशियन डॉल्स का समावेश

Author(s) Uma Kumari, Prof. Dr. Nirupama Singh
Country India
Abstract बनारस की पहचान न केवल इसके घाटों और मंदिरों से है, बल्कि यहाँ की समृद्ध लोककला और हस्तशिल्प परंपरा भी उतनी ही खास है। लकड़ी के खिलौने बनाना यहाँ की एक पुरानी और जीवंत परंपरा रही है। ये खिलौने पूरी तरह हाथ से बनाए जाते थे, जिनमें जानवरों, देवी-देवताओं और आम जीवन से जुड़ी चीज़ों का सुंदर चित्रण होता रहा है।
समय के साथ इस परंपरा ने एक नया मोड़ लिया, जब बनारस में रशियन मैट्र्योश्का डॉल्स जैसे खिलौनों का निर्माण शुरू हुआ। पहले ये डॉल्स रूस की पहचान थीं, पर बनारसी कारीगरों ने उन्हें अपनी शैली, रंगों और धार्मिक-लोककथाओं से जोड़कर एक नई सांस्कृतिक पहचान दी। आज ये डॉल्स भगवानों, त्योहारों और बनारसी जीवन की कहानियाँ कहती हैं।
ये डॉल्स अब केवल बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं रहीं, बल्कि सांस्कृतिक उपहार और सजावटी वस्तुएँ बन चुकी हैं। इससे न केवल बनारसी शिल्प को नया जीवन मिला, बल्कि कारीगरों को भी स्थायी आजीविका का एक नया माध्यम मिला। यह दर्शाता है कि भारतीय लोककला आधुनिकता के साथ भी अपनी आत्मा नहीं खोती।
इस शोध के ज़रिए मैं यह दिखाना चाहती हूँ कि कैसे दो भिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों वाले देश— भारत और रूस, लोककला और हस्तशिल्प के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं। यह अध्ययन पारंपरिक कारीगरी में नवाचार के साथ-साथ सांस्कृतिक संवाद को भी रेखांकित करता है।
Keywords बनारस, लकड़ी के खिलौने, रशियन डॉल्स, लोककला और शिल्प, रोज़गार और सांस्कृतिक पहचान
Field Arts > Drawing
Published In Volume 7, Issue 3, May-June 2025
Published On 2025-06-14
DOI https://doi.org/10.36948/ijfmr.2025.v07i03.48004
Short DOI https://doi.org/g9qqdp

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